हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,असली मुद्दा है कि फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर इस्राईल बसा कैसे?
फ़िलिस्तीन में 1947 के पहले मुसलमान, इसाई और यहूदी मिल जुलकर रहते थे और वह एक धर्मनिरपेक्ष जगह थी जहाँ सभी धर्म के मानने वाले अपने अपने तरीक़े से इबादत किया करते थे अक़्सा कंपाउंड में तीनों मज़हबों के चिन्ह मौजूद है जहाँ यहूदी, मुसलमान और इसाई इबादत करते थे।
लेकिन अचानक क्या हुआ की मामला गड़बड़ हो गया?
बात कुछ ऐसे लोगों की है जिन्हें धर्म के नाम पर अपना एक मुल्क चाहिए था, वह लोग सियासी यहूदी जो अपने आप को ज़ायोनिस्ट कहलाते है और उनका मानना है कि दुनिया में यहूदियों का एक मुल्क होना चाहिए जो किसी भी ख़तरे से अम्न में रहे और उसके दुश्मन को दुनिया से मिटा दिया जाए।
इस प्लान के साथ ज़ायोनिस्ट यहूदी 1898 में स्विट्ज़रलैंड के बेसेल शहर में मिले और अपने लिए एक ऐसी जगह चुनी जो इतिहास के हिसाब से उनका जन्म स्थल था. उन्होंने इसे प्रॉमिस्ड लैंड का नाम दिया और सारी दुनिया में जहां जहां भी यहूदी थे उन्हें वहां आने के लिए प्रोत्साहित किया।
अपने इस प्लान को पूरा करने के लिए ज़ायोनिस्ट लोगो ने विश्व युद्ध प्रथम के पहले अंग्रेज़ों के साथ भी एक मुहाएदा (अग्रिमेंट) किया कि फ़िलिस्तीन की ज़मीन अगर उन्हें दी जाती है तो आने वाली सभी जंगों में वह उनका साथ देगे।
प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेज़ों की जीत हुई जिसके बाद अंग्रेज़ों ने उस्मानिया हुकूमत को तोड़कर उस देश को 18 मुल्कों में बांट दिया. फ़िलिस्तीन के हिस्से को अपने कंट्रोल में रखा. 1920 के बाद से सारी दुनिया के यहूदी फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर आने लगे जिन्हें अंग्रेज़ों ने बहुत सी सहूलियत दी और फ़िलिस्तीनी मुसलमानों ने उन्हें जगह भी दी।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब अंग्रेज़ फ़िलिस्तीन छोड़ रहे थे तब यहूदियों ने UN में अपनी अर्ज़ी दी कि फ़िलिस्तीन की ज़मीन को दो हिस्सों में बांटा जाए और वहां पर उन्हें अपना मुल्क बनाने दिया जाए, जिसे UN ने एक ही दिन में पारित कर के 18 मई 1948 में इस्राईल नाम के मुल्क का एलान कर दिया।
फिर क्या था, इस्राईल अपने पंजे पसारने लगा और अंग्रेज़ों, अमेरिकी और फ्रांस की सेना की मदद से अरब मुल्कों को हरा कर पूरी फ़िलिस्तीनी ज़मीन अपने चंगुल में कर ली।
तब से ले कर आज तक इस्राईल रोज़ फ़िलिस्तीनियों पर हमला करता है और उन्हें छोटी सी गज़्ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में क़ैद कर रखा है. अपनी आज़ादी की आवाज़ उठाने वालों को आतंकवादी बुलाया जाता है और कब्ज़ा करने वाले इस्राईल को शांति का दूत।